hanuman chalisa Fundamentals Explained
hanuman chalisa Fundamentals Explained
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Bhima attempts to lift Hanuman's tail. Generations after the events of your Ramayana, and during the situations of your Mahabharata, Hanuman is now a virtually neglected demigod dwelling his daily life inside of a forest. Soon after some time, his spiritual brother from the god Vayu, Bhima, passes by way of seeking flowers for his spouse. Hanuman senses this and decides to teach him a lesson, as Bhima had been known being boastful of his superhuman power (at this stage in time supernatural powers ended up Substantially rarer than inside the Ramayana but nonetheless witnessed during the Hindu epics).
भावार्थ – हे पवनकुमार! मैं अपने को शरीर और बुद्धि से हीन जानकर आपका स्मरण (ध्यान) कर रहा हूँ। आप मुझे बल, बुद्धि और विद्या प्रदान करके मेरे समस्त कष्टों और दोषों को दूर करने की कृपा कीजिये।
भावार्थ – आपने वानर राज सुग्रीव का महान् उपकार किया तथा उन्हें भगवान् श्री राम से मिलाकर [बालि वध के उपरान्त] राजपद प्राप्त करा दिया।
राम मिलाय राज पद दीह्ना ॥१६॥ तुह्मरो मन्त्र बिभीषन माना ।
भावार्थ – भूत–पिशाच आदि आपका ‘महावीर’ नाम सुनते ही (नामोच्चारण करने वाले के) समीप नहीं आते हैं।
The Stoic advantage of wisdom, or sophia, stands like a beacon guiding us through the complexities of daily life. It's not simply the accumulation of data, but fairly the appliance of comprehension to navigate the globe with equanimity and discernment. Within our quickly-paced, data-saturated age, wisdom turns into an indispensable
पवनदीप राजन द्वारा गाया हनुमान चालीसा
सांवली सूरत पे मोहन, दिल दीवाना हो गया - भजन
भावार्थ– आप साधु–संत की रक्षा करने वाले हैं, राक्षसों का संहार करने वाले हैं और श्री राम जी के अति प्रिय हैं।
The Peshwa era rulers in 18th century city of Pune supplied endowments to more Hanuman temples than to temples of other deities for example Shiva, Ganesh or Vitthal. Even in present time you will discover far more Hanuman temples in town along with the district than of other deities.[118]
तुम मम प्रिय भरतहि सम भाई ॥१२॥ सहस बदन तुह्मारो जस गावैं ।
सियराम–सरूपु अगाध अनूप बिलोचन–मीननको जलु है।
व्याख्या – भजन अथवा सेवा का परम फल है हरिभक्ति की प्राप्ति। यदि भक्त को पुनः जन्म लेना पड़ा तो अवध आदि तीर्थों में जन्म लेकर प्रभु का परम भक्त बन जाता है।
भावार्थ – अन्त समय में मृत्यु होने पर वह भक्त प्रभु के परमधाम click here (साकेत–धाम) जायगा और यदि उसे जन्म लेना पड़ा तो उसकी प्रसिद्धि हरिभक्त के रूपमें हो जायगी।